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  • Facebook आईडी कैसे बनाये (2023) | नया फेसबुक अकाउंट चलाना कैसे सीखें

    Facebook आईडी कैसे बनाये (2023) | नया फेसबुक अकाउंट चलाना कैसे सीखें

    Facebook आईडी कैसे बनाये – दोस्तों, इस पोस्ट पर जानेंगे की दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क फेसबुक पर अकाउंट कैसे बनाते है क्या आप जानते है की फेसबुक ऐसा प्लेटफार्म है जिसमें पैसे कमा सकते है इसके अलावा अपने दोस्तों को खोज सकते है और नया दोस्त बना सकते है बिजनेस के लिए फ्री में Facebook अकाउंट बना सकते है।

    फेसबुक का यूज़ आसान बनाने के लिए और बढ़ती यूजर को बेहतर सर्विस देने के लिए एप्प भी बनाया गया है जिसे आप मोबाइल Play Store एप्प से Facebook एप्प डाउनलोड कर सकते है और इसी एप्प से Facebook Account Create कर पायेंगे अगर आप इनमें रुचि रखते है तो आपके लिए फायदेमंद है मनोरंजन, स्पोर्ट्स, एजुकेशन, समाचार और सामाजिक सूचना का भी जानकारी प्राप्त कर सकते है।

    फेसबुक क्या है और किसने बनाया

    फेसबुक सोशल नेटवर्किंग साइट Most Popular ऑनलाइन सोशल मीडिया प्लेटफार्म है जो बहुत ही लोकप्रिय है इसका यूजर लगभग 2.9 मिलियन यूज़र्स है फेसबुक पर दोस्त बना सकते है और लोगों से सम्बन्ध बनाने में मदद करता है आप अपने किसी भी दोस्तों मैसेज से बात कर सकते है इसके अलावा Video Call में बात कर सकते है और दोस्त, परिवार, समाज, स्कूल, कॉलेज से जोड़े रखता है.

    आजकल करोड़ों लोग फेसबुक का यूज़ करते है और सभी मोबाइल कम्पनिया फेसबुक एप्प एनेबल करके देते है अगर आप फेसबुक अकाउंट बना रहे है तो सबसे पहले आपका उम्र 13 साल से अधिक होना चाहिए क्या आप जानते फेसबुक का मालिक कौन है मार्क ज़ुकेरबर्ग (Mark Zuckerberg) है इन्होने 2004 में The Facebook नाम से शुरुआत किया था इसके बाद 2005 Facebook रख दिया गया इसका शार्ट नाम FB से जाना जाता है।

    Facebook आईडी कैसे बनाये

    फेसबुक पर अकाउंट बनाने से पहले आपके पास मोबाइल नंबर या ईमेल आईडी जरुरी होता है क्योंकि फेसबुक अकाउंट को वेरीफाई करने के लिए मोबाइल या ईमेल आईडी को डालना पड़ता है इसके अलावा आपके मोबाइल या लैपटॉप पर इंटरनेट कनेक्शन होना चाहिए तभी आप Facebook आईडी बना पायेंगे इसलिए फेसबुक अकाउंट कैसे बनाते है इसकी पूरी जानकारी के लिए पोस्ट शुरु से अंत तक पढ़िए और बताए गए Step by Step फॉलो करें।

    Step >1 सबसे पहले मोबाइल पर किसी ब्राउज़र पर “www.facebook.com” लिखकर सर्च करे।

    Step >2 अब यहाँ नीचे Create New Account या हिंदी में (नया अकाउंट बनाएं) पर क्लिक करे।

    Step >3 इसके बाद यहाँ अपना First Name डालें फिर ( जो आपका नाम के आगे में रहता है वही सरनेम होता है ) Surname डालने के बाद नीचे Next पर क्लिक करे।

    Step >4 इसके बाद Birthday Date सेलेक्ट करने के बाद Next पर क्लिक करे।

    अब यहाँ फेसबुक आईडी बनाने के लिए 2 ऑप्शन दिए है पहला Mobile Number के द्वारा दूसरा Email Address दोनों का प्रोसेस सेम रहता है लेकिन एक बात का ध्यान रहे आप जिस मोबाइल पर फेसबुक आईडी बना रहे उसमें Mobile number और Email Address लगा होना चाहिए।

    Step >5 आप जिस Mobile Number या Email Address से बनाना चाहते है उसे डालने के बाद Next पर क्लिक करे।

    Step >6 इसके बाद Gender (पुरुष-Male, महिला-Female) सेलेक्ट करने के बाद Next पर क्लिक करे।

    Step >7 अब अपने Facebook अकाउंट का New Password डालें और Sign up पर क्लिक करे!

    Sign up पर क्लिक करते ही Facebook अकाउंट बनने के लिए तैयार है इसके बाद लॉगिन Password Save करने के लिए Ok पर क्लिक कर लेना है अब आपने जो Mobile Number या Email Address डालें है उसमें FB वेरिफिकेशन Code डालने के बाद Confirm पर क्लिक करे।

    Step >8 इसके बाद Allow करने के बाद Next, Next पर क्लिक करते ही Facebook अकाउंट ओपन हो जाएगा।

    नया Facebook अकाउंट चलाना कैसे सीखें
    अब आपका फेसबुक अकाउंट बन गया है इसे कैसे चलाते है नया दोस्त कैसे खोज करते है, Profile Photo कैसे डालें इसके बारे में जानने के लिए नीचे बताए गए Step को फॉलो करे।

    Step >9 अब यहाँ Facebook अकाउंट का होम पेज पर आने के बाद Contact आइकॉन पर क्लिक करे

    Step >10 इसके बाद Your Profile Picture पेज पर आने के बाद नीचे Upload a Photo पर क्लिक करते ही Gallery ओपन होगा उस अपना एक Photo सेलेक्ट कर लेना जिससे की लोग आपको पहचान पाये।

    Step>11 इसके बाद आप अपना Address, City और Country सेलेक्ट करने के बाद Next पर करे।

    Step >12 अब आप Photo Share कर सकते है इसके लिए Photo सेलेक्ट कर लेने के बाद Write something here लिखा है उस पर Photo से रिलेटेड कुछ लिख देना है इसके बाद Post पर क्लिक करे।

    Facebook पर दोस्त कैसे बनाएं
    फेसबुक अकाउंट पर आप किसी को भी दोस्त बना सकते है और मैसेज में बात भी कर सकते है लेकिन इसके लिए Friends Search करना होगा चलिए जानते

    है की Facebook नया दोस्त कैसे बनाते है.

    Step >13 इसके लिए Find Friends पर क्लिक करें

    Step >14 इसके बाद सर्च बॉक्स पर क्लिक करने के बाद अपने दोस्त का नाम type करे फिर Search पर क्लिक करे।

    Step >15 अब यहाँ दोस्त का List दिख रहा होगा उसे Friend बनाने के लिए Add Friend पर क्लिक करते ही आपका दोस्त का मोबाइल पर Friend request जाएगा और आपका पहचान कर एक्सेप्ट कर लेगा।

    Facebook Account Free Features


    ° 1 फेसबुक हमारे दोस्त, समाज, परिवार से जोड़े रखता है और इससे हम फोटो, वीडियो इमोशन्स भावनाओं Story में डाल सकते है।


    ° 2 फसबुक के मदद से स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी पर Page या Group join होकर जरुरी Date इन्फॉर्मेशन ले सकते है।

    ° 3 अगर आप किसी खिलाड़ी, अभिनेता, नेता तो इससे भी हम बहुत कुछ जानकारी प्राप्त कर सकते है।

    ° 4 समाज में बहुत से ऐसे संस्था, संगठन कार्य कर रहे होते है उनसे जुड़कर जानकारी कर सकते है और साथ ही मदद कर सकते है।

    ° 5 किसी कम्पनी के जानकारी के लिए या कम्पनी कौन सा प्रोडक्ट बनाती उस प्रोडक्ट विचार जान सकते है।

    ° 6 अगर आप बिज़नेस के लिए Facebook Account बनाया है तो Facebook Page बनाकर किसी कंपनी या प्रोडक्ट को बेच सकते है।

    6 Facebook अपना Location शेयर कर सकते है इसके अलावा इंटरनेट के सहायता से Messaging, Video Call कर सकते है।


    7 Facebook अकाउंट यूज़ करने से पहले आवश्यक सूचना

    ° 8 फेसबुक अकाउंट का Password किसी के पास शेयर मत न करे, अगर आपसे कभी भी Fake कॉल करके Facebook का पासवर्ड पूछे तो नहीं बताना है और कॉल Disconnect कर देना है।

    ° 9 अपने फेसबुक अकाउंट से किसी का Photo, Video, Story देखकर भदा कमेंट ना या गाली नहीं देना अगर आप ऐसा करते है तो आपका फेसबुक अकाउंट Delete हो सकता है फेसबुक के तरफ से इसलिए ऐसा काम ना करे।

    ° 10 अपने Facebook अकाउंट पर Lust Photo या Video नहीं डालना है ऐसे में भी आपका Facebook Banned हो सकता है।

    ° 11 Facebook अकाउंट पर अपने personal details शेयर नहीं करना है इससे डाटा चोरी हो सकता है।


    : 12 . Facebook अकाउंट क्यों जरुरी होता है?

    Ans: करोड़ों लोग Facebook का यूज़ करते है चाहे वह दोस्त, व्यापार, स्टूडेंट, कॉलेज यूनिवर्सिटी हो अपनी सूचना और नेटवर्किंग बनाने में मदद करता है इसके अलावा आप जिस फील्ड में रुचि रखते है उन सभी का Facebook अकाउंट बना होता है।

    Q: 13. Facebook पर नया अकाउंट बनाने के लिए क्या चाहिए?

    Ans: Facebook पर नया अकाउंट बनाने के लिए आपका उम्र 13 से अधिक होना चाहिए तभी आप Facebook पर अकाउंट बना पायेंगे Facebook अकाउंट बनाने के लिए किसी भी ब्राउज़र पर “www.facebook.com” लिखकर सर्च करे इसके बाद नीचे Create New Account क्लिक करके First Name और Surname डालने के बाद Next पर क्लिक करे।

    Q: 14 . Facebook अकाउंट आसानी से बनाने के लिए क्या करें?

    Ans: दोस्तों जब आप Facebook पर अकाउंट बना रहे होता है और नया फेसबुक बनाते समय कुछ चीज़ समझ नहीं आ रहा होगा तो Help लेने के लिए ऊपर पर दिए Speaker आइकॉन को ऑन रख लेना है इसके बाद आगे क्या करना एक Voice इंस्ट्रक्शन्स के मदद से बहुत ही आसान तरीका से Facebook पर नया बना पायेंगे।

    अंतिम शब्द

    मेरा नाम jot technical nabjot singh है और इस Blog पर हर रोज नयी पोस्ट अपडेट करता हूँ। उमीद करता हूँ आपको मेरे द्वार लिखी गयी पोस्ट पसंद आयेगी और अगर आप भी हमारे साथ काम करना चाहतें है हमें मेल करें nabjotsinghkhalsa@gmail.com

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  • सीख जो जीवन बदल दे

    कहानी : सीख जो जीवन बदल दे
    एक राजा था जिसका नाम रामधन था उनके जीवन में सभी सुख थे | राज्य का काम काज भी ऐशो आराम से चल रहे था | राजा के नैतिक गुणों के कारण प्रजा भी बहुत प्रसन्न थी | और जिस राज्य में प्रजा खुश रहती हैं वहाँ की आर्थिक व्यवस्था भी दुरुस्त होती हैं इस प्रकार हर क्षेत्र में राज्य का प्रवाह अच्छा था |

    इतने सुखों के बाद भी राजा दुखी था क्यूंकि उसकी कोई संतान नहीं थी यह गम राजा को अंदर ही अंदर सताता रहता था | प्रजा को भी इस बात का बहुत दुःख था | वर्षों के बाद राजा की यह मुराद पूरी हुई और उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई | पुरे नगर में कई दिनों तक जश्न मना | नागरिको को राज महल में दावत दी गई | राजा की इस ख़ुशी में प्रजा भी झूम रही थी |

    समय बितता जा रहा था राज कुमार का नाम नंदनसिंह रखा गया | पूजा पाठ एवम इन्तजार के बाद राजा को सन्तान प्राप्त हुई थी इसलिये उसे बड़े लाड़ प्यार से रखा जाता था लेकिन अति किसी बात की अच्छी नहीं होती अधिक लाड़ ने नंदन सिंह को बहुत बिगाड़ दिया था | बचपन में तो नंदन की सभी बाते दिल को लुभाती थी पर बड़े होते होते यही बाते बत्तमीजी लगने लगती हैं | नंदन बहुत ज्यादा जिद्दी हो गया था उसके मन में अहंकार आ गया था वो चाहता था कि प्रजा सदैव उसकी जय जयकार करे उसकी प्रशंसा करें | उसकी बात ना सुनने पर वो कोलाहल मचा देता था | बैचारे सैनिको को तो वो पैर की जुती ही समझता था | आये दिन उसका प्रकोप प्रजा पर उतरने लगा था | वो खुद को भगवान के समान पूजता देखना चाहता था | आयु तो बहुत कम थी लेकिन अहम् कई गुना बढ़ चूका था |

    नन्दन के इस व्यवहार से सभी बहुत दुखी थे | प्रजा आये दिन दरबार में नन्दन की शिकायत लेकर आती थी जिसके कारण राजा का सिर लज्जा से झुक जाता था | यह एक गंभीर विषय बन चूका था |

    एक दिन राजा ने सभी खास दरबारियों एवम मंत्रियों की सभा बुलवाई और उनसे अपने दिल की बात कही कि वे राज कुमार के इस व्यवहार से अत्यंत दुखी हैं , राज कुमार इस राज्य का भविष्य हैं अगर उनका व्यवहार यही रहा तो राज्य की खुशहाली चंद दिनों में ही जाती रहेगी | दरबारी राजा को सांत्वना देते हैं और कहते हैं कि आप हिम्मत रखे वरना प्रजा निसहाय हो जायेगी | मंत्री ने सुझाव दिया कि राजकुमार को एक उचित मार्गदर्शन एवम सामान्य जीवन के अनुभव की जरुरत हैं | आप उन्हें गुरु राधागुप्त के आश्रम भेज दीजिये सुना हैं,वहाँ से जानवर भी इंसान बनकर निकलता हैं | यह बात राजा को पसंद आई और उसने नन्दन को गुरु जी के आश्रम भेजा |

    अगले दिन राजा अपने पुत्र के साथ गुरु जी के आश्रम पहुँचे | राजा ने गुरु राधा गुप्त के साथ अकेले में बात की और नन्दन के विषय में सारी बाते कही | गुरु जी ने राजा को आश्वस्त किया कि वे जब अपने पुत्र से मिलेंगे तब उन्हें गर्व महसूस होगा | गुरु जी के ऐसे शब्द सुनकर राजा को शांति महसूस हुई और वे सहर्ष अपने पुत्र को आश्रम में छोड़ कर राज महल लौट गये |

    अगले दिन सुबह गुरु के खास चेले द्वारा नंदन को भिक्षा मांग कर खाने को कहा गया जिसे सुनकर नंदन ने साफ़ इनकार कर दिया | चेले ने उसे कह दिया कि अगर पेट भरना हैं तो भिक्षा मांगनी होगी और भिक्षा का समय शाम तक ही हैं अन्यथा भूखा रहना पड़ेगा | नंदन ने अपनी अकड़ में चेले की बात नहीं मानी और शाम होते होते उसे भूख लगने लगी लेकिन उसे खाने को नहीं मिला | दुसरे दिन उसने भिक्षा मांगना शुरू किया | शुरुवात में उसके बोल के कारण उसे कोई भिक्षा नहीं देता था लेकिन गुरुकुल में सभी के साथ बैठने पर उसे आधा पेट भोजन मिल जाता था | धीरे-धीरे उसे मीठे बोल का महत्व समझ आने लगा और करीब एक महीने बाद नंदन को भर पेट भोजन मिला जिसके बाद उसके व्यवहार में बहुत से परिवर्तन आये |

    इसी तरह गुरुकुल के सभी नियमों ने राजकुमार में बहुत से परिवर्तन किये जिसे राधा गुप्त जी भी समझ रहे थे एक दिन राधा गुप्त जी ने नंदन को अपने साथ सुबह सवेरे सैर पर चलने कहा |दोनों सैर पर निकल गये रास्ते भर बहुत बाते की | गुरु जी ने नंदन से कहा कि तुम बहुत बुद्धिमान हो और तुममे बहुत अधिक उर्जा हैं जिसका तुम्हे सही दिशा मे उपयोग करना आना चाहिये | दोनों चलते-चलते एक सुंदर बाग़ में पहुँच गये | जहाँ बहुत सुंदर-सुंदर फूल थे जिनसे बाग़ महक रहा था | गुरु जी ने नंदन को बाग़ से पूजा के लिये गुलाब के फुल तोड़ने कहा | नंदन झट से सुंदर-सुंदर गुलाब तोड़ लाया और अपने गुरु के सामने रख दिये | अब गुरु जी ने उसे नीम के पत्ते तोड़कर लाने कहा | नंदन वो भी ले आया | अब गुरु जी ने उसे एक गुलाब सूंघने दिया और कहा बताओ कैसा लगता हैं नंदन ने गुलाब सुंघा और गुलाब की बहुत तारीफ की | फिर गुरु जी उसे नीम के पत्ते चखकर उसके बारे में कहने को कहा | जैसे ही नंदन ने नीम के पत्ते खाये उसका मुंह कड़वा हो गया और उसने उसकी बहुत निंदा की | और जतर क़तर पीने का पानी ढूंढने लगा |

    नन्दन की यह दशा देख गुरु जी मुस्कुरा रहे थे | पानी पिने के बाद नंदन को राहत मिली फिर उसने गुरु जी से हँसने का कारण पूछा | तब गुरु जी ने उससे कहा कि जब तुमने गुलाब का फुल सुंघा तो तुम्हे उसकी खुशबू बहुत अच्छी लगी और तुमने उसकी तारीफ की लेकिन जब तुमने नीम की पत्तियाँ खाई तो तुम्हे वो कड़वी लगी और तुमने उसे थूक दिया और उसकी निंदा भी की | गुरु जी से नन्दन को समझाया जिस प्रकार तुम्हे जो अच्छा लगता हैं तुम उसकी तारीफ करते हो उसी प्रकार प्रजा भी जिसमे गुण होते हैं उसकी प्रशंसा करती हैं अगर तुम उनके साथ दुर्व्यवहार करोगे और उनसे प्रशंसा की उम्मीद करोगे तो वे यह कभी दिल से नही कर पायेंगे | इस प्रकार जहाँ गुण होते हैं वहाँ प्रशंसा होती हैं |

    नंदन को सभी बाते विस्तार से समझ आ जाती हैं और वो अपने महल लौट जाता हैं | नंदन में बहुत परिवर्तन आता हैं और वो बाद में एक सफल राजा बनता हैं |

    कहानी की शिक्षा


    गुरु की सीख ने नंदन का जीवन ही बदल दिया वो एक क्रूर राज कुमार से एक न्याय प्रिय दयालु राजा बन गया |इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती हैं कि हममे गुण होंगे तो लोग हमें हमेशा पसंद करेंगे लेकिन अगर हम अवगुणी हैं तो हमें प्रशंसा कभी नहीं मिल सकती |

    हिंदी कहानी संग्रह

  • अनुभव की कंघी Hindi kahani with moral

    कहानी अनुभव की कंघी

    रामधन नाम का एक पुराना व्यपारी था जो अपनी व्यापारी समझ के कारण दोनों हाथो से कमा रहा था | उसको कोई भी टक्कर नहीं दे सकता था | वो दूर-दूर से अनाज लाकर उसे शहर में बेचता था उसे बहुत सा लाभ होता था | वो अपनी इस कामयाबी से बहुत खुश था | इसलिये उसने सोचा व्यापार बढ़ाना चाहिये और उसने पड़ौसी राज्य में जाकर व्यापार करने की सोची |

    दुसरे राज्य जाने के रास्ते का मानचित्र देखा गया जिसमे साफ-साफ था कि रास्ते में एक बहुत बड़ा मरुस्थल हैं | खबरों के अनुसार उस स्थान पर कई लुटेरे भी हैं | लेकिन बूढा व्यापारी कई सपने देख चूका था | उस पर दुसरे राज्य में जाकर धन कमाने की इच्छा प्रबल थी | उसने अपने कई किसान साथियों को लेकर प्रस्थान करने की ठान ली | बैलगाड़ियाँ तैयार की और उस पर अनाज लादा |इतना सारा माल था जैसे कोई राजा की शाही सवारी हो |

    बूढ़े राम धन की टोली में कई लोग थे जिसमे जवान युवक भी थे और वृद्ध अनुभवी लोग,जो बरसो से राम धन के साथ काम कर रहे थे | जवानो के अनुसार अगर इस टोली का नेत्रत्व कोई नव युवक करता तो अच्छा होता क्यंकि यह वृद्ध रामधन तो धीरे-धीरे जायेगा और पता नही उस मरुस्थल में क्या-क्या देखना पड़ेगा |

    तब कुछ नौ जवानो ने मिलकर अपनी अलग टोली बना ली और स्वयम का माल ले जाकर दुसरे राज्य में जाकर व्यापार करने की ठानी | रामधन को उसके चहेते लोगो ने इस बात की सुचना दी | तब राम धन ने कोई गंभीर प्रतिक्रिया नहीं दिखाई उसने कहा भाई सबको अपना फैसला लेने का हक़ हैं | अगर वो मेरे इस काम को छोड़ अपना शुरू करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं | और भी जो उनके साथ जाना चाहता हो जा सकता हैं |

    अब दो अलग व्यापारियों की टोली बन चुकी थी जिसमे एक का नेत्रत्व वृद्ध रामधन कर रहे थे और दुसरे का नेत्रत्व नव युवक गणपत कर रहे थे | दोनों की टोली में वृद्ध एवम नौ जवान दोनों सवार थे |

    सफ़र शुरू हुआ | रामधन और गणपत अपनी अपनी टोली लेकर चल पड़े | थोड़ी दूर सब साथ –साथ ही चल रहे थे कि जवानो की टोली तेजी से आगे निकल पड़ी और रामधन और उनके साथी पीछे रह गये | रामधन की टोली के नौजवान इस धीमी गति से बिलकुल खुश नहीं थे और बार-बार रामधन को कौस रहे थे,कहते कि वो नौ जवानो की टोली तो कब की नगर की सीमा लाँघ चुकी होगी और कुछ ही दिनों में मरुस्थल भी पार कर लेगी | और हम सभी इस बूढ़े के कारण भूखे मर जायेंगे |

    धीरे-धीरे रामधन की टोली नगर की सीमा पार करके मरुस्थल के समीप पहुँच जाती हैं |तब रामधन सभी से कहते हैं यह मरुस्थल बहुत लंबा हैं और इसमें दूर दूर तक पानी की एक बूंद भी नहीं मिलेगी, इसलिये जितना हो सके पानी भर लो | और सबसे अहम् यह मरुस्थल लुटेरे और डाकुओं से भरा हुआ हैं इसलिये हमें यहाँ का सफ़र बिना रुके करना होगा | साथ ही हर समय चौकन्ना रहना होगा |

    उन्हें मरुस्थल के पहले तक बहुत से पानी के गड्ढे मिल जाते हैं जिससे वे बहुत सारा पानी संग्रह कर लेते हैं | तब उन में से एक पूछता हैं कि इस रास्ते में पहले से ही इतने पानी के गड्ढे हैं,हमें एक भी गड्ढा तैयार नहीं करना पड़ा | तब रामधन मूंछो पर ताव देकर बोलते हैं इसलिए तो मैंने नव जवानों की उस टोली को आगे जाने दिया | यह सभी उन लोगो ने खुद के लिए तैयार किया होगा जिसका लाभ हम सभी को मिल रहा हैं | यह सुनकर कर टोली के विरोधी साथी खिजवा जाते हैं | और अन्य, रामधन के अनुभव की प्रशंसा करने लगते हैं | सभी रामधन के कहे अनुसार बंदोबस्त करके और आराम करके आगे बढ़ते हैं |

    आगे बढ़ते हुए राम धन सभी को आगाह कर देता हैं कि अब हम सभी मरुस्थल में प्रवेश करने वाले हैं | जहाँ ना तो पानी मिलेगा, ना खाने को फल और ना ही ठहरने का स्थान और यह बहुत लम्बा भी हैं | हमें कई दिन भी लग सकते हैं | सभी रामधन की बात में हामी मिलाते हुए उसके पीछे हो लेते हैं |

    अब वे सभी मरुस्थल में प्रवेश कर चुके थे | जहाँ बहुत ज्यादा गर्मी थी जैसे अलाव लिये चल रहे हो |आगे चलते-चलते उन्हें सामने से कुछ लोग आते दिखाई देते हैं | वे सभी रामधन को प्रणाम करते हैं और हाल चाल पूछते हैं | उन में से एक कहता हैं आप सभी व्यापारी लगते हो, काफी दूर से चले आ रहे हो, अगर कोई सेवा का अवसर देंगे तो हम सभी तत्पर हैं | उसकी बाते सुन रामधन हाथ जोड़कर कह देता हैं कि भाई हम सभी भले चंगे हैं, तुम्हारा धन्यवाद जो तुम सभी ने इतना सोचा | और वे अपने साथियों को लेकर आगे बढ़ जाते हैं | आगे बढ़ते ही टोली के कुछ नव युवक फिर से रामधन को कौसने लगते हैं कि जब वे लोग हमारी सहायता कर रहे हैं तो इस वृद्ध रामधन को क्या परेशानी हैं ?

    कुछ दूर चलने के बाद फिर से कुछ लोग सामने से आते दिखाई देते हैं जिनके वस्त्र गिले थे और वे रामधन और उसके साथियों को कहते हैं कि आप सभी राहगीर लगते हो और इस मरुस्थल के सफर से थके लग रहे हो | अगर आप चाहो तो हम आपको पास के एक जंगल में ले चलते हैं | जहाँ बहुत पानी और खाने को फल हैं | साथ ही अभी वहाँ पर तेज बारिश भी हो रही हैं | उसी में हम सभी भीग गये थे | अगर आप सभी चाहे तो अपना सारा पानी फेक कर जंगल से नया पानी भर ले और पेट भर खाकर आराम कर ले | लेकिन रामधन साफ़ ना बोल कर अपने साथियों से जल्दी चलने को कह देते हैं |

    अब टोली के कई नौ जवानो को रामधन पर बहुत गुस्सा आता हैं और वे उसके समीप आकर अपना सारा गुस्सा निकाल देते हैं और पूछते हैं कि क्यूँ वे उन भले लोगो की बात नहीं सुन रहे और क्यूँ हम सभी पर जुल्म कर रहे हैं | तब रामधन मुस्कुराते हुए कहते हैं कि वे सभी लुटेरे हैं और हमसे अपना पानी फिकवा कर हमें निसहाय करके लुट लेना चाहते हैं और हमें यही मरने छोड़ देना चाहते हैं | तब वे नव युवक गुस्से में दांत पिसते हुये कहते हैं कि सेठ जी तुम्हे ऐसा क्यूँ लगता हैं ? तब रामधन कहते हैं कि तुम खुद देखो, इस मरुस्थल में कितनी गर्मी हैं, क्या यहाँ आसपास कोई जंगल हो भी सकता हैं ,यहाँ की भूमि इतनी सुखी हैं कि दूर दूर तक बारिश ना होने का संकेत देती हैं | यहाँ एक परिंदे का घौसला तक नहीं तो फल फुल कैसे हो सकते हैं | और जरा निगाह उठाकर ऊपर देखो दूर-दूर तक कोई बारिश के बादल नहीं हैं, ना ही हवा में बारिश की ठंडक हैं, ना ही गीली मिटटी की खुशबु,तो कैसे उन लोगो की बातों पर यकीन किया जा सकता हैं ? मेरी बात मानो कुछ भी हो जाये अपना पानी मत फेंकना और ना ही कहीं भी रुकना |

    कुछ देर आगे चलने के बाद उन्हें रास्ते में कई नरकंकाल और टूटी फूटी बैलगाड़ी मिलती हैं | वे सभी कंकाल गणपत की टोली के लोगो के थे | उन में से एक भी नहीं बचा था | उनकी ऐसी दशा देख सभी रोने लगते हैं क्यूंकि वे सभी उन्ही के साथी थे | तब रामधन कहते हैं कि जरुर इन लोगो ने तुम्हारे जैसे ही इन लुटेरो को अपना साथी समझा होगा और इसका परिणाम यह हुआ, आज उन्हें अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा | रामधन सभी को ढाढस बंधाते हुये कहते हैं हम सभी को भी यहाँ से जल्दी निकलना होगा क्यूंकि वे सभी लुटेरे अभी भी हमारे पीछे हैं | प्रार्थना करो कि हम सभी सही सलामत यहाँ से निकल जाये |

    शिक्षा :

    कहते अनुभव की कंघी (Anubhav Ki Kanghi)जब काम आती हैं जब सर पर कोई बाल नहीं बचता अर्थात अनुभव उम्र बीतने और जीवन जीने के बाद ही मिलता हैं | अनुभव कभी भी पूर्वजो की जागीर में नहीं मिलता | जैसे इस कहानी में नव जवानो में जोश तो बहुत था लेकिन अनुभव की कंघी नहीं थी जो कि रामधन के पास थी जिसका उसने सही समय पर इस्तेमाल किया और विपत्ति से सभी को निकाल कर ले गया |शिक्षा यही हैं कि किसी काम को करने के लिये जोश के साथ अनुभव होना भी अत्यंत आवश्यक हैं |

    Hindi Kahani

  • मन चंगा तो कठौती में गंगा(Man Changa to Kathoti Me Ganga)प्रेम कथा :सुन्दरता चेहरे का नहीं अपितु दिल का गुण हैं

    मन चंगा तो कठौती में गंगा
    प्रेम कथा :सुन्दरता चेहरे का नहीं अपितु दिल का गुण

    यह कहानी एक ऐसे लड़के निखिलेश की हैं जिसे डांस का जूनून था, वो डांस के जरिये दुनियाँ को जीत लेना चाहता था, ये उसका जूनून था लेकिन दिल में कहीं बैठी एक आरजू भी थी, जो अक्सर ही उससे उसके प्यार के बारे में कहा करती थी | उसकी इच्छा थी, उसकी जीवन संगिनी एक गायिका हो, भले वो गायन में स्नातक ना हो, न ही उसका पेशा गायन हो, लेकिन वो उसके लिए गुनगुना सके, उसके लिए चार शब्द ही हो पर गा सके | वो अक्सर ही भीड़ में उस आवाज को तलाशता था | न जाने उसके दिल को कौन सी उस आवाज का इन्तजार था जो उसे इतने दिनों में कभी नहीं मिली थी |

    वो डांस के साथ-साथ अपनी पढाई में भी बहुत अच्छा था इसलिए शहर के एक अच्छे कॉलेज में पढ़ रहा था | उसके पिता को उसका डांस बिल्कुल पसंद नहीं था क्यूंकि निखिलेश के डांस के कारण वो पिता का बिज़नेस में सहयोग नहीं कर पाता था | निखिलेश डांस में इतना ज्यादा घुस चूका था कि उसकी ख्याति भी शहर में एक अच्छे डांसर के रूप में होने लगी थी |

    कॉलेज में अक्सर उसे गुनगुनाने की आवाज सुनाई देती थी जो उसके मन को विचलित कर देती थी | शायद यही वो आवाज थी जिसे वो ढूंढ रहा था | जब भी वो उस आवाज को सुनता, उसका पीछा करता लेकिन उसे कभी वो लड़की नहीं मिलती जिसकी वो आवाज थी | कई दिन बीत गये | उसे बिन देखे ही उस आवाज से प्यार होने लगा था | उसने अपने दिल ही दिल में उस आवाज के अनुरूप एक तस्वीर बना ली थी और अपने सपनों में उस तस्वीर से मोहब्बत करने लगा |

    एक दिन उसे फिर से वही आवाज सुनाई दी | उसने भागकर देखा तो कॉलेज के बगीचे में दो लड़कियाँ बैठी थी | उसे आज वो लड़की दिख ही गई जिसकी आवाज उसके दिलों दिमाग में छाई हुई थी | वो दोनों बहने थी जो हमेशा ही साथ रहती थी | उन में से एक का नाम आभा और दूसरी का नाम प्रतिभा था | आभा स्वभाव से शांत थी अक्सर ही अपनी बहन के पीछे चुप सी खड़ी रहती थी | उसकी मुस्कान बहुत अच्छी थी वो दिल की जितनी साफ़ थी उसके चेहरे पर भी वही निर्मल भाव थे लेकिन वो दिखने बहुत साधारण थी और इसके विपरीत प्रतिभा आज के ज़माने की मॉडर्न लड़की थी जो बहुत बिंदास रहती थी, फैशनेबल कपड़े पहनती और घुमती फिरती एक जिंदादिल खुश मिजाज लड़की थी |

    जब निखिलेश ने प्रतिभा को देखा तो उसकी आँखे थम गई | उस नशीली आवाज के पीछे ये सुंदर चेहरा देख निखिलेश सन्न सा रह गया और अपना सब कुछ उस पर लुटा बैठा | हर वक्त वो इस कोशिश में रहता कि कैसे भी प्रतिभा से उसकी बात हो इसके लिये उसने उसे फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भी भेजी | वो घंटो फेसबुक पर प्रतिभा से बाते करता, एक दोस्त की तरह उससे अपने सुख दुःख शेयर करता और दूसरी तरफ से भी उसे बहुत अच्छा रिस्पोंस मिल रहा था | निखिलेश की जिन्दगी का खालीपन भर गया था | उसे एक साथी की आदत सी होने लगी थी | जब तक वो दिन भर की बाते फेसबुक पर उससे शेयर नहीं करता, उसका दिन पूरा नहीं होता था | कई बार उसके असाइनमेंट पुरे नहीं होते और जब वो ये बात अपनी दोस्त को फेसबुक पर कहता, दुसरे दिन उसके नाम से कम्पलीट असाइनमेंट क्लास में जमा हो जाता था | इसके आलावा जब भी निखिलेश को पैसे की जरुरत होती, उसकी फ्रेंड अपनी स्कॉलरशिप के पैसे उसके अकाउंट में ट्रान्सफर कर देती | ऐसी कई बाते जो उसके कहते ही उसकी दोस्त पूरा कर देती थी | निखिलेश को यह अहसास हो गया था कि वो जितना प्रतिभा को पसंद करता हैं उतना ही प्रतिभा उसे | उसे यह भी यकीन हो गया था कि प्रतिभा जितनी मॉडर्न रहती हैं वास्तव में उतनी ही सरल और दिल से भोली हैं | शायद इसी एक बात में निखिलेश गलती कर रहा था क्यूंकि फेसबुक पर वो जिससे बाते कर रहा था वो प्रतिभा नहीं, आभा थी,जिसकी आवाज से, व्यवहार से, अपनेपन से, निखिलेश को प्यार था वो आभा थी | लेकिन निखिलेश का मन उस बाहरी सुन्दरता की तरफ आकर्षित था जिसका मन उतना सुंदर नहीं जितना उसका था जिस का चेहरा उतना सुंदर नहीं था | यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा | आभा और निखिलेश दोनों ही एक ग़लतफ़हमी के चलते एक दुसरे के बहुत करीब आ गये | निखिलेश के अहसासों में प्रतिभा का चेहरा और आभा की आवाज उसका सुंदर मन उसके विचार दिन प्रतिदिन गहरे होने लगे | और इसी तरह उसके डांस का जूनून भी बढ़ता गया क्यूंकि आभा जो कि उसके लिए प्रतिभा थी वो भी निखिलेश के डांस से बहुत प्यार करती थी | यहाँ तक की निखिलेश ने अपनी प्यार की बाते अपने दोस्तों से तक कह दी थी | सब उसे हमेशा बोलते थे कि वो बहुत लकी हैं क्यूंकि उसे प्रतिभा जैसी सुंदर और मॉडर्न लड़की में वो सब गुण मिले जिसे वो हमेशा चाहता था |

    एक दिन उसने फैसला किया कि वो प्रतिभा से जाकर अपने दिल की बात कहेगा | और उसने वही किया | उस दिन वो बहुत अच्छे से रेडी हुआ और हाथों में गुलाब के फूलो का गुलदस्ता लेकर प्रतिभा से मिलने गया | प्रतिभा अपने दोस्तों के साथ बैठी थी और वही उसके साइड में आभा भी थी | निखिलेश उन दोनों की तरफ बढ़ रहा था जिसे देख आभा के दिल में अजीब सी बैचेनी थी क्यूंकि वो लोग आज तक रूबरू नहीं हुए थे पर कहीं ना कही उसे बहुत ख़ुशी भी हो रही थी | जैसे ही निखिलेश उन तक पहुंचा और उसने हाथों में गुलाब लेकर, घुटनों के बल बैठकर प्रतिभा को प्रपोज़ किया | यह देख आभा स्तब्ध रह गई और उसे सारी बाते समझ आ गई और वो चुपचाप वहाँ से चली गई |

    थोड़ी देर तक सब शांत रहा और एक दम ही प्रतिभा जोर-जोर से हँसने लगी और उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर निखिलेश की बहुत हँसी उड़ाई और कहा कि तुम क्या सोचते हो, मेरे जैसी मॉडर्न लड़की एक नचैया से शादी करेगी ? मेरी पसंद तो एक पैसे वाला बिज़नेस मेन हैं और वो निखिलेश की बहुत बेज्जती की |निखिलेश अपने गुस्से को पीकर वहाँ से निकल गया | तब ही उसे आभा मिली, उसने निखिलेश से माफ़ी मांगी |उसे बताया कि फेसबुक पर वो जिससे बात करता था वो खुद आभा थी | यह सुनकर निखिलेश और गुस्सा हो जाता हैं और अपना पूरा फ्रस्टेशन आभा पर निकाल देता हैं |

    इसके बाद निखिलेश सब छोड़ कर वहाँ से चला गया | वो अपनी बेज्जती भूल नहीं पाया और उसने अपना डांस भी छोड़ दिया | अपने पिता की इच्छानुसार बिज़नेस करने लगा | वो दिन रात बस काम करता | उसे बिज़नेस में बहुत सफलता मिली लेकिन हर रोज उसकी आँखों में वो एक दिन घूमता रहता | जब उसकी बेज्जती हुई थी | उसको सभी ऐशो आराम मिला लेकिन चैन नहीं, उसके चेहरे पर हँसी तब ही आती,जब उसे फेसबुक पर कही आभा की कोई बात याद आती थी |

    दूसरी तरफ आभा भी उसे बहुत याद करती थी | एक दिन आभा को एक बहुत बड़े डांस काम्पटीशन के बारे में पता चला | वो चाहती थी कि इसमें निखिलेश हिस्सा ले लेकिन वो कैसे निखिलेश को इसके लिये मनाती ? उसे निखिलेश के बारे में बस इतना पता था कि वो अब टाउन में नही हैं और एक सफल बिज़नेस मैन बन गया हैं | आभा ये जानती थी कि निखिलेश कितना भी अमीर हो जाये,वो डांस के बिना खुश नहीं होगा और वो उसे ये ख़ुशी देकर अपने मन का बोझ कम करना चाहती थी | इसके लिये उसने निखिलेश का पता इन्टरनेट ने निकालकर उसे एक शुभचिन्तक जो कि निखिलेश के डांस का फेन हैं के तौर पर एक लैटर भेजा जिसमे डांस कॉम्पीटिशन का जिक्र था | (असल में निखिलेश के डांस को सभी इसी तरह से पसंद करते थे इसलिए निखिलेश को इस शुभचिंतक से कोई आश्चर्य नहीं था | ) निखिलेश डांस छोड़ चूका था उसने बस लैटर पढ़ा और रख दिया लेकिन आभा को पता था निखिलेश को कैसे मनाना हैं उसने कई लैटर और कई तस्वीरे भेजी जिसमे निखिलेश के डांस के प्रति प्यार का प्रमाण था जिसे देख निखिलेश का दिल पिघलने लगा और आभा ने जब तक यह सब किया जब तक के निखिलेश ना मान जाये और निखिलेश को मानना पड़ा |

    निखिलेश में फॉर्म भरा और जमकर तैयारी भी की | उसके चेहरे पर शांति और ख़ुशी के भाव थे जिसे परिवार और ऑफिस एम्प्लोयी समझ रहे थे | वो दिन आ गया जब कॉम्पिटीशन था | निखिलेश ने बिलकुल तोडू परफॉरमेंस दी और वो जीत गया | जब उसे पुरुस्कार मिला तब सबसे आगे आभा खड़ी ताली बजा रही थी उसे देख निखिलेश के चेहरे पर वही गुस्से के भाव आ गये और वो वहां से निकल गया |

    जब वो घर आया तो घर में उस शुभचिंतक ने फूल भेजकर उसका अभिवादन किया | साथ ही उसे एक लैटर भी लिखा जिसमे था कि आने वाले कुछ दिनों में उसे एक सरप्राइज मिलेगा |निखिलेश चौंक गया | उसे बार-बार उसी बात का ख्याल सताने लगा |

    एक दिन शाम को घर लौटा तो घर पर प्रतिभा और उसके माता- पिता प्रतिभा के रिश्ते के लिए आये थे | असल में आभा ने प्रतिभा और निखिलेश की शादी के लिए अपने माता-पिता और प्रतिभा सभी को मना लिया था | आभा हर हाल में निखिलेश को खुश देखना चाहती थी इसलिये पहले उसने निखिलेश को वापस अपने डांस से मिलवाया और फिर निखिलेश को प्रतिभा से | निखिलेश कुछ देर सभी के साथ बैठा पर उसका मन नहीं लग रहा था | उसने कमरे में जाकर फ्रेश होने की इजाजत ली और वहां से अंदर चला गया |

    अपने कमरे में बैठ निखिलेश सारी बाते सोच रहा था कि कैसे उसने एक आवाज सुनी, फिर उसकी बात आभा से हुई, वो कितना खुश था जब आभा हर परिस्थिती में उसके साथ ना होते हुए भी थी | लेकिन ये सब उस दिन खत्म हो गया जब ग़लतफ़हमी दूर हो गई | लेकिन फिर से उसे वही सब महसूस हुआ जब उसने उस शुभचिन्तक के लैटर को पढ़ा और उसकी बातों को माना | निखिलेश ने एक दम ही शुभचिंतक वाले लैटर निकाले और उसे असाइनमेंट की कॉपी से मैच किया उसे समझ आ गया कि इस सबके पीछे कौन हैं ? उसे सारी बाते समझ आ गई | और यह भी कि वो क्या चाहता हैं |

    वो कमरे से बाहर आकर सबके बीच बैठा और उसने प्रतिभा के पिताजी के हाथ पकड़ कर कहा कि मैं शादी के लिये तैयार हूँ पर मेरी एक शर्त हैं ,मैं प्रतिभा से नहीं आभा से शादी करना चाहता हूँ | वो सभी को कहता हैं मैं भी औरों की तरह सुन्दरता में प्यार ढूढ़ रहा था ये भूलकर की मुझे जिस आवाज से प्यार था उसका चेहरा यह तय नहीं करता कि आवाज कितनी सुंदर हैं मेरे दिल को जिसने छुआ था असल में वो आभा ही थी | उसकी पूरी बाते सुन सभी की आँखे भर गई और निखिलेश और आभा एक हो गये |

    आभा का मन बहुत साफ़ था इसलिए उसे उसका प्यार मिलता हैं और तभी तो हम कहते हैं मन चंगा तो कठौती में गंगा | यह कहानी कैसी लगी जरुर कमेंट बॉक्स में लिखे |

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  • आरुणि उद्दालक की गुरु भक्ति |Uddalaka Aruni Story In Hindi

    आरुणि उद्दालक की गुरु भक्ति

    आज के समय में गुरु और गुरु भक्ति बस किताबों में ही पढ़ने सुनने को मिलती हैं इतिहास में ऐसे कई उदहारण हैं जो हमें गुरु भक्ति का ज्ञान देते हैं | उन में से एक आपके सामने प्रस्तुत हैं :

    आरुणि उद्दालक की गुरु भक्ति
    Aaruni Uddalak Guru Bhakti

    राजा जन्मेजय की नगरी में अयुद्धौम्य नामक प्रसिद्ध गुरु का आश्रम था इनका एक सबसे उत्तम शिष्य था आरुणी | आरुणी की गुरु भक्ति इतिहास के पन्नो में गुंजायमान हैं |

    घटना कुछ ऐसी हैं, एक बार गाँव के पार मेड़ में दरार बन जाती हैं इससे पानी रिस- रिस खेतो में आने लगता हैं जिसे रोकना बहुत जरुरी हो जाता हैं क्यूंकि ऐसा ना करने पर खेतों में पानी घुसने का खतरा था | जब यह बात आश्रम तक पहुंची तब गुरु अयुद्धौम्य को गाँव की फसलों की चिंता होने लगती हैं | तब वे अपने शिष्य आरुणी को अपने पास बुलाते है समस्या के बारे में विस्तार से बताते हैं और आदेश देते हैं – पुत्र आरुणी इसी समय जाकर मेड़ से बहते पानी का कोई उपचार करो वरना पानी का बहाव बढ़ते ही मेड़ टूट भी सकता हैं और अगर ऐसा होता हैं वो सारी फसले नष्ट हो जायेंगी | गुरु की आज्ञा पाते ही आरुणी बिना कुछ सोचे अपने कार्य को पूरा करने लक्ष्य की तरफ चल पड़ता हैं |  गाँव में पहुँचने पर आरुणी पूरी स्थिती समझता हैं और कई प्रकार से मेड़ से बहते पानी को रोकने का प्रयास करता हैं लेकिन पानी का बहाव अधिक होने पर दरार में लगी कोई भी सामग्री टिक नहीं पाती और पानी तेजी से खेतों के आने लगता हैं | तब आरुणी विचार करता हैं और उस मेड़ की दरार पर स्वयं लेट जाता हैं उसके ऐसा करते ही पानी खेतों में जाने से रुक जाता हैं | पानी बहुत ठंडा होने के कारणआरुणी को कम्पन्न महसूस होने लगता हैं लेकिन उसके लिए गुरु का आदेश सर्वोपरि हैं वो कितनी भी तकलीफ सह लेगा पर गुरु के आदेश की अवहेलना नहीं करेगा | आरुणी इसी तरह से सुबह से शाम तक मेड़ पर लेटा रहता हैं और पानी से खेतो की फसलों को बचाता हैं और पूरी श्रद्धा से अपने गुरु के आदेश का पालन करता हैं |

    उधर आश्रम में गुरु अयुद्धौम्य बहुत चिंतित हैं | संध्या होने को हैं और आरुणी की कोई खबर नहीं,अब तक तो आरुणी को घर आ जाना था | इन्ही सब विचारों से घिरे अयुद्धौम्य सोच में बैठे हैं | तब ही दुसरे शिष्य गुरु अयुद्धौम्य के पास जाकर चिंता का कारण पूछते हैं | तब गुरु जी कहते हैं – पुत्रो मैंने सुबह आरुणी को मेड़ की दरार भरकर खेतों को पानी से बचाने के लिए भेजा था | उस बात को बहुत समय हो गया, अब तक तो आरुणी को आश्रम आ जाना चाहिये था | वो संध्या की प्रार्थना कभी नहीं छोड़ता,आज पहली बार वो उसमे उपस्थित नहीं हुआ | कहीं कोई चिंता का विषय तो नहीं हैं ? आरुणी किसी बड़ी परेशानी में तो नहीं | सभी चिंतित होकर मेड़ तक जाकर देखने का निर्णय लेते हैं | गुरु अयुद्धौम्य एवम कुछ शिष्य आरुणी को देखने आश्रम से निकल पड़ते हैं |

    मेड़ के पास पहुंचकर गुरु अयुद्धौम्य जोर-जोर से आरुणी को पुकारते हैं | थोड़ी देर बाद आरुणी को गुरु जी की आवाज सुनाई देती हैं और वो जोर से उत्तर देता हैं – गुरु जी मैं यहाँ हूँ, मेड़ के उपर लेता हूँ |

    सभी आरुणी की तरफ भागते हुये आते हैं और गुरु अयुद्धौम्य जल्दी से आरुणी को खड़ा करते हैं और सभी शिष्य मिलकर दरार को भरते हैं | गुरु जी आरुणी से पूछते हैं – पुत्र तुम इतनी भीषण ठण्ड में इस तरह पानी पर क्यूँ लेटे थे | तुम्हारा पूरा शरीर ठण्ड से नीला पड़ गया हैं | अगर अभी हम नहीं आते तो तुम मृत्यु के समीप ही थे | आरुणी सिर झुकाकर कहता हैं – क्षमा कीजिये गुरुवर, मैंने आप सभी को बहुत कष्ट दिया, किन्तु आपने मुझे पानी बंद करने भेजा था जिसे मैं अकेला कर नहीं पाया, तब एक ही उपाय था जो मैंने किया | गुरु ने कहा – तुम आश्रम आकर इसकी सुचना दे सकते थे | अपने प्राणों को इस तरह से संकट में क्यूँ डाला ? तब आरुणि कहता हैं – हे गुरुवर! आपका आदेश मेरे लिये सर्वोपरि हैं,आपकी चिंता मेरे लिए सबसे बड़ी हैं | अगर मैं आश्रम आता तो फसल का कई हिस्सा बरबाद हो गया होता और यह जानकर आपको बहुत दुःख होता और मेरे कारण आपको मिला दुःख मेरे लिये मृत्यु के समान ही हैं | इसलिये मैंने मेड पर लेटकर पानी को रोकने का निर्णय लिया | आरुणि की ऐसी निष्ठा देख गुरु अयुद्धौम्य को गर्व महसूस होता हैं और वो आरुणि को आशीर्वाद देते हैं – पुत्र तुम्हारा नाम सदैव गुरु भक्ति के लिये जाना जायेगा | युगों- युगों तक तुम्हे सुना एवम पढ़ा जायेगा और तुम्हारे द्वारा किये गये इस कार्य का बखान कर आने वाली पीढ़ी को गुरु भक्ति का पाठ सिखाया जायेगा | और इस तरह गुरु अयुद्धौम्य आरुणि को एक नया नाम उद्दालक देते हैं और उसे आशीर्वाद देते हैं कि तुम्हे बिना किसी अध्ययन के सारे वेदों का ज्ञान प्राप्त हो | इस तरह उसी दिन आरुणि की शिक्षा ख़त्म होती हैं और गुरु उन्हें अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने का आदेश देते हैं |

    आरुणि का नाम उन्ही महान शिष्यों के साथ लिया जाता हैं जो गुरु आदेश को सर्वोपरि रखते हैं जिनमे एक नाम एकलव्य का भी हैं | यह दोनों ही नाम गर्व के साथ लिए जाते हैं |

    आज गुरु शिष्य की वो परंपरा विलुप्त हो चुकी हैं ऐसे में छात्रों को इसका ज्ञान केवल इन एतिहासिक कहानियों के जरिये मिलता है जो उनमे संस्कारों को पोषित करता हैं | अपनी आने वाली पीढ़ी को तकनीकी ज्ञान के साथ- साथ संस्कारिक भी बनाये जिसमे ऐसी कई रोचक कहानियाँ ही आपकी मदद करेंगी जिससे आने वाली पीढ़ी में सम्मान के भाव उत्पन्न होंगे और उनमें अपने से बड़े एवम अपने शिक्षको के प्रति आदर का भाव पनपेगा | अपने बच्चों को पर्याप्त समय दे उन्हें कहानियाँ सुनाये क्यूंकि यही एक ऐसी कला हैं जिसके जरिये आप अपने बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान दे सकते हैं और अपना मूल्यवान समय भी | साथ ही उनके ज्ञान को भी बढ़ा सकते हैं |

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  • हिंदी कहानी -मेहनत का फल का महत्व | Mehnat ka phal mahatva story hindi

    मेहनत का फल का महत्व  Mehnat ka phal mahatva story essay in hindi

    एक नगर में प्रतिष्ठित व्यापारी रहते थे जिन्हें बहुत समय बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी.उसका नाम चंद्रकांत रखा गया. चंद्रकांत घर में सभी का दुलारा था. अतिकठिनाई एवं लंबे समय इंतजार के बाद संतान का सुख मिलने पर, घर के प्रत्येक व्यक्ति के मन में व्यापारी के पुत्र चंद्रकांत के प्रति विशेष लाड़ प्यार था जिसने चंद्रकांत को बहुत बिगाड़ दिया था. घर में किसी भी बात का अभाव नहीं था. चंद्रकांत की मांग से पहले ही उसकी सभी इच्छाये पूरी कर दी जाती थी. शायद इसी के कारण चंद्रकांत को ना सुनने की आदत नहीं थी और ना ही मेहनत के महत्व का आभास था . चंद्रकांत ने जीवन में कभी अभाव नहीं देखा था इसलिए उसका नजरिया जीवन के प्रति बहुत अलग था और वहीं व्यापारी ने कड़ी मेहनत से अपना व्यापार बनाया था.ढलती उम्र के साथ व्यापारी को अपने कारोबार के प्रति चिंता होने लगी थी. व्यापारी को चंद्रकांत के व्यवहार से प्रत्यक्ष था कि उसके पुत्र को मेहनत के फल का महत्व नहीं पता. उसे आभास हो चूका था कि उसके लाड प्यार ने चंद्रकांत को जीवन की वास्तविक्ता और जीवन में मेहनत के महत्व से बहुत दूर कर दिया हैं. गहन चिंतन के बाद व्यापारी ने निश्चय किया कि वो चन्द्रकांत को मेहनत के फल का महत्व, स्वयं सिखायेगा. चाहे उसके लिए उसे कठोर ही क्यूँ न बनना पड़े .

    व्यापारी ने चंद्रकांत को अपने पास बुलाया और बहुत ही तीखे स्वर में उससे बात की. उसने कहा कि तुम्हारा मेरे परिवार में कोई अस्तित्व नही हैं, तुमने मेरे कारोबार में कोई योगदान नहीं दिया और इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी मेहनत से धन कमाओं, तब ही तुम्हे तुम्हारे धन के मुताबिक दो वक्त का खाना दिया जायेगा. यह सुनकर चन्द्रकांत को ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ा, उसने उसे क्षण भर का गुस्सा समझ लिया लेकिन व्यापारी ने भी ठान रखी थी. उसने घर के सभी सदस्यों को आदेश दिया कि कोई चन्द्रकांत की मदद नहीं करेगा और नाही उसे बिना धन के भोजन दिया जायेगा.

    चन्द्रकांत से सभी बहुत प्यार करते थे जिसका उसने बहुत फायदा उठाया. वो रोज किसी न किसी के पास जाकर धन मांग लाता और अपने पिता को दे देता. और व्यापारी उसे उन पैसो को कुँए में फेकने का बोलता जिसे चंद्रकांत बिना किसी अड़चन के फेक आता और उसे रोज भोजन मिल जाता. ऐसा कई दिनों तक चलता रहा लेकिन अब घर के लोगो को रोज-रोज धन देना भारी पड़ने लगा. सभी उससे अपनी कन्नी काटने लगे, जिस कारण चंद्रकांत को मिलने वाला धन कम होने लगा और उस धन के हिसाब से उसका भोजन भी कम होने लगा.

    एक दिन चन्द्रकांत को किसी ने धन नहीं दिया और उसे अपनी भूख को शांत करने के लिए गाँव में जाकर कार्य करना पड़ा. उस दिन वो बहुत देर से थका हारा व्यापारी के पास पहुँचा और धन देकर भोजन माँगा. रोज के अनुसार व्यापारी ने उसे वो धन कुँए में फेंकने का आदेश दिया जिसे इस बार चंद्रकांत सहजता से स्वीकार नहीं कर पाया और उसने पलट कर जवाब दिया – पिताजी मैं इतनी मेहनत करके, पसीना बहाकर इस धन को लाया और आपने मुझे एक क्षण में इसे कुँए में फेंकने कह दिया. यह सुनकर व्यापारी समझ गया कि आज चंद्रकांत को मेहनत के फल का महत्व समझ आ गया हैं. व्यापारी भलीभांति जानता था कि उसके परिवार वाले चन्द्रकांत की मदद कर रहे हैं, तब ही चंद्रकांत इतनी आसानी से धन कुँए में डाल आता था लेकिन उसे पता था, एक न एक दिन सभी परिवारजन चन्द्रकांत से कन्नी काट लेंगे,उस दिन चन्द्रकांत के पास कोई विकल्प शेष नहीं होगा. व्यापारी ने चन्द्रकांत को गले लगा लिया और अपना सारा कारोबार उसे सोंप दिया.

    शिक्षा :

    आज के समय में उच्च वर्ग के परिवारों की संतानों को मेहनत के फल का महत्व पता नहीं होता और ऐसे में यह दायित्व उनके माता पिता का होता हैं कि वो अपने बच्चो को जीवन की वास्तविक्ता से अवगत कराये. लक्ष्मी उसी घर में आती हैं जहाँ उसका सम्मान होता हैं .

    मेहनत ही एक ऐसा हथियार हैं जो मनुष्य को किसी भी परिस्थिती से बाहर ला सकता हैं. व्यापारी के पास इतना धन तो था कि चंद्रकांत और उसकी आने वाली पीढ़ी बिना किसी मेहनत के जीवन आसानी से निकाल लेते लेकिन अगर आज व्यापारी अपने पुत्र को मेहनत का महत्व नहीं बताता तो एक न एक दिन व्यापारी की आने वाली पीढ़ी व्यापारी को कोसती.

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  • श्रवण कुमार कथा |Shravan Kumar Katha Mata Pita Name Hindi

    पौराणिक युग में शांतुनु नामक एक सिद्ध साधू थे, इनकी पत्नी भी एक सिद्ध धर्म परायण नारि थी . कहानी उस समय की हैं, जब शांतुनु और उनकी पत्नी बहुत वृद्ध हो चुके थे और उनकी आँखों की रोशनी भी चली गई थी . इन दोनों का एक पुत्र था जिसका नाम था श्रवण कुमार .

    श्रवण कुमार कथा Shravan Kumar Katha Mata Pita Name Hindi

    श्रवण कुमार बहुत ही सरल स्वभाव का व्यक्ति था . माता-पिता के लिए उसके मन में बहुत प्रेम एवम श्रद्धा थी वो दिन रात अपने माता-पिता की सेवा करता था . अपने माता पिता का बच्चो की तरह लालन पालन करता था . उसके माता पिता भी स्वयं को गौरवशाली महसूस करते थे और अपने पुत्र को दिन रात हजारो दुआये देते थे . कई बार दोनों एक दुसरे से कहते कि हम कितने धन्य हैं कि हमें श्रवण जैसा मातृभक्त पुत्र मिला, जिसने स्वयं के बारे में ना सोच कर, अपना पूरा जीवन, वृद्ध नेत्रहीन माता पिता की सेवा में लगा दिया . इसकी जगह कोई अन्य होता तो विवाह के बाद केवल स्वयं का हित सोचता और बूढ़े नेत्रहीन माता-पिता को कही छोड़ आता .और ख़ुशी से अपना जीवनव्यापन करता .

    जब ये बात श्रवण ने सुनी तो उसने माता पिता से कहा कि मैं कुछ भी भिन्न नहीं कर रहा हूँ, यह मेरा कर्तव्य हैं, जब मैं छोटा था तब आपने मुझे इससे भी ज्यादा अच्छा जीवन दिया और अब मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं कि मैं आपकी सेवा करूँ . आपदोनों जो भी इच्छा रखते हैं, मुझसे कहे . मैं उन्हें अवश्य पूरा करूँगा . तब शांतुनु और उसकी पत्नी कहते हैं – पुत्र श्रवण ! हम दोनों की आयु बहुत हो चुकी हैं , अब जीवन का कोई भरोसा नहीं हैं, किसी भी समय हमारी आँखे बंद हो सकती हैं ऐसे में हमारी एकमात्र इच्छा हैं, हम तीर्थ यात्रा करना चाहते हैं, क्या तुम हमारी यह इच्छा पूरी कर सकते हो ? श्रवण कुमार अपने माता-पिता के चरणों को पकड़ कर अत्यंत प्रसन्नता के साथ कहता हैं – हाँ पिताश्री, यह तो मेरे लिए परम सौभाग्य की बात होगी कि मैं आप दोनों की इच्छा पूरी करू .श्रवण अपने माता पिता को तीर्थ करवाने हेतु एक कावड़ तैयार करता हैं जिसमे एक तरफ शांतुनु एवम दूसरी तरफ उनकी पत्नी बैठती हैं . और कावड़ के डंडे को अपने कंधे पर लादकर यात्रा शुरू करता हैं . उसके हृदय में माता पिता के प्रति इतना स्नेह हैं कि उसे उस कावड़ का लेषमात्र भी भार नहीं लगता . अपने पुत्र के इस कार्य से माता-पिता का मन प्रसन्नता से भर उठता हैं और वे पुरे रास्ते अपने पुत्र श्रवण को दुआयें देते चलते हैं .


    shravan kumar
    तीर्थ करते समय जब वे तीनों अयोध्या नगरी पहुँचते हैं, तब माता पिता श्रवण से कहते हैं कि उन्हें प्यास लगी हैं . श्रवण कावड़ को जंगल में रखकर, हाथ में पत्तो का पात्र बनाकर, सरयू नदी से जल लेने जाता हैं . उसी समय, उस वन में अयोध्या के राजा दशरथ आखेट पर निकले थे और उस घने वन में वह हिरण को शिकार बनाने के लिए उसके पीछा कर रहे थे, तब ही उन्हें घने जंगल में झाड़ियों के पार सरयू नदी से पानी के हल चल की आवाज आती हैं , उस हलचल को हिरण के पानी पिने की आवाज समझ कर महाराज दशरथ शिकार के उद्देश्य से तीर चला देते हैं और उस तीर से श्रवण कुमार के हृदय को आघात पहुंचता हैं जिससे उसके मुँह से पीड़ा भरी आवाज निकलती हैं जिसे सुन दशरथ स्तब्ध रह जाते हैं और उन्हें अन्हौनी का अहसास होता हैं और वे भागकर सरयू नदी के तट पर पहुंचते हैं, जहाँ वे अपने तीर को श्रवण के ह्रदय में लगा देख भयभीत हो जाते हैं और उन्हें अपनी भूल का अहसास होता हैं . दशरथ, श्रवणकुमार के समीप जाकर उससे क्षमा मांगते हैं, तब अंतिम सांस लेता श्रवण कुमार महाराज दशरथ को अपने वृद्ध नेत्रहीन माता पिता के बारे में बताता हैं और कहता हैं कि वे प्यासे हैं उन्हें जाकर पानी पिला दो और उसके बाद उन्हें मेरे बारे में कहना और इतना कह कर श्रवण कुमार मृत्यु को प्राप्त हो जाता हैं . भारी ह्रदय के साथ महाराज दशरथ श्रवण के माता पिता के पास पहुँचते हैं और उन्हें पानी पिलाते हैं . माता पिता आश्चर्य से पूछते हैं उनका पुत्र कहा हैं ? वे भले ही नेत्रहीन हो, पर वे दोनों अपने पुत्र को आहट से ही समझ लेते थे . माता पिता के प्रश्नों को सुन महाराज दशरथ उनके चरणों में गिर जाते हैं और बीती घटना को विस्तार से कहते हैं . पुत्र की मृत्यु की खबर सुनकर माता पिता रोने लगते हैं और दशरथ से उन्हें अपने पुत्र के पास ले जाने को कहते हैं . महाराज दशरथ कावड़ उठाकर दोनों माता पिता को श्रवण के शरीर के पास ले जाते हैं . माता पिता बहुत जोर-जोर से विलाप करने लगते हैं, उनके विलाप को देख महाराज दशरथ को अत्यंत ग्लानि का आभास होता हैं और वे अपनी करनी की क्षमा याचना करते हैं लेकिन दुखी पिता शांतुनु महाराज दशरथ को श्राप देते हैं कि जिस तरह मैं शांतुनु, पुत्र वियोग में मरूँगा, उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में मरोगे . इतना कहकर दोनों माता- पिता अपने शरीर को त्याग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं .


    महाराज दशरथ श्राप मिलने से अत्यंत व्याकुल हो जाते हैं और कई वर्षो बाद जब उनके पुत्र राम का राज्य अभिषेक होता हैं, तब माता कैकई के वचन के कारण राम, सीता और लक्षमण को चौदह वर्षो का वनवास स्वीकार करना पड़ता हैं और इस तरह महाराज दशरथ की मृत्यु भी पुत्र वियोग में होती हैं . अपने अंतिम दिनों में उन्हें शांतुनु के कहे शब्द याद आते हैं और वे राम के वियोग में अपना शरीर त्याग देते हैं .

    कहानी की शिक्षा Moral Of The Story Kahani:
    हमें यह कहानी यही शिक्षा देती हैं कि बिना लक्ष्य को देखे, उसे भेदना कई बार आपको गलती का पात्र बना देता हैं और आप ना चाहते हुए भी दूसरों के दुःख का कारण बन जाते हैं .

    यह थी श्रवण कुमार की कहानी, अपनी माता पिता भक्ति के कारण ही श्रवण कुमार पुराणों में जीवित हैं . श्रवण कुमार सदैव अपनी मातृभक्ति के लिए जाने जाते हैं, उन्ही की कहानी सुनाकर माता पिता अपने बच्चो को संस्कारित करते हैं .

    रामायण महाकाव्य में ऐसे कई चरित्र हैं जो हमें वास्तविक जीवन के कर्तव्यों का ज्ञान देते हैं और हमें धर्म एवम कर्म का सही मार्गदर्शन देते हैं . ऐसी ही अन्य कहानियों के लिए मास्टर पेज रामायण महाभारत कहानी पर क्लिक करे एवम अन्य शिक्षाप्रद कहानियों के लिए प्रेरणादायक हिंदी कहानी पर क्लिक करें .

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  • परिश्रम का महत्त्व पर लेख, निबंध

    परिश्रम का महत्त्व पर लेख , निबंध Importance (Mahatva) of efforts Article Essay in hindi

    सफतला की पहली कुंजी श्रम है, इसके बिना सफलता का स्वाद कभी भी नहीं चखा जा सकता है. जिंदगी में आगे बढ़ना है, सुख सुविधा से रहना है, एक मुकाम हासिल करना है, तो इन्सान को श्रम करना होता है. भगवान ने श्रम करने का गुण मनुष्यों के साथ साथ सभी जीव जंतुओं को भी दिया है. पक्षी को भी सुबह उठकर अपने खाने पीने का इंतजाम करने के लिए बाहर जाना पड़ता है, उसे बड़े होते ही उड़ना सिखाया जाता है, ताकि वह अपना पालन पोषण खुद कर सके. दुनिया में हर जीव जंतु को, अपने पेट भरने के लिए खुद मेहनत करती पड़ती है. इसी तरह मनुष्यों को भी बचपन से बड़े होते ही, श्रम करना सिखाया जाता है. चाहे वह पढाई के लिए हो, या पैसे कमाने के लिए या नाम कमाने के लिए. मेहनत के बिना तो रद्दी भी हाथ नहीं आती.

    Table of Contents
    परिश्रम का महत्त्व पर लेख , निबंध Importance of efforts Article in hindi
    क्या है परिश्रम (What is parishram
    परिश्रम की परिभाषा (definition of parishram)-
    परिश्रम के फायदे/लाभ (Parishram benefits)–
    परिश्रम नहीं करने से क्या होगा
    परिश्रम का महत्त्व पर लेख , निबंध Importance of efforts Article in hindi
    देश दुनिया के प्रसिध्य लोगों ने अपनी मेहनत परिश्रम के बल से ही दुनिया को ये अद्भुत चीजें दी है. आज हमारे महान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को ही देखिये, ये हफ्ते में सातों दिन 17-18 घंटे काम करते है, ये न कभी त्योहारों, न पर्सनल काम के लिए छुट्टी लेते है. देश का इतना बड़ा आदमी जिसे किसी को छुट्टी के लिए जबाब न देना पड़े, वह तक परिश्रम करने से पीछे नहीं हटता है. देश को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी ने जी जान रात दिन एक करके मेहनत की और आज इसका फल है कि हम आजाद है. कड़ी मेहनत एक कीमत है, जो हम सफलता पाने के लिए भुगतान करते है और जिससे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ आती है.


    Parishram

    क्या है परिश्रम (What is parishram
    शारीरिक व मानसीक रूप से किया गया काम परिश्रम कहलाता है. ये काम हम अपनी इच्छा के अनुसार चुनते है, जिसे लेकर हम अपने उज्जवल भविष्य की कामना करते है. पहले श्रम का मतलब सिर्फ शारीरिक श्रम होता था, जो मजदूर या लेबर वर्ग करता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है, श्रम डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, राजनैतिज्ञ, अभिनेता-अभिनेत्री, टीचर, सरकारी व प्राइवेट दफ्तरों में काम करने वाला हर व्यक्ति श्रम करता है.


    परिश्रम की परिभाषा (definition of parishram)-
    कामयाब व्यक्ति के जीवन से हम परिश्रम के बारे में अधिक जान सकते है, उनके जीवन से हमें इसकी सही परिभाषा समझ आती है. तो चलिए हम आज आपको कुछ बातें बता रही है, जो मेहनती व्यक्ति अपने जीवन में अपनाता है, और सफलता का स्वाद चखता है. यही बातें/आदर्श हम अपने जीवन में उतार कर सफल हो सकते है.

    समय की बर्बादी न करें – कई लोग आलस का दामन थामे रहते है, वे लोग परिश्रम करने की जगह आराम से धीरे-धीरे काम करके जीवन बिताना चाहते है. परिश्रमी व्यक्ति कभी भी समय की बर्बादी में विश्वास नहीं रखता, वह निरंतर काम करते रहने में विश्वास रखता है. समय की बर्बादी आलसी, लोगों की निशानी है. कई बार ऐसा भी होता है कि परिश्रम करते रहने से भी मन मुताबित फल नहीं मिलता है, या फल मिलने में देरी होती है. लेकिन इस बात से हार मानकर नहीं बैठना चाहिए. परिश्रम व काम पर विश्वास से सही समय पर सही चीज मिल ही जाती है.
    धन के पीछे न भागें – परिश्रम का ये मतलब नहीं है कि, पैसा कमाने की होड़ में लगे रहें. धन हमारी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा है, लेकिन धन ही ज़िन्दगी नहीं होती है. धन के पीछे परिश्रम करने से दुनिया की सुख सुविधा तो मिलती है, लेकिन कई बार मन की शांति नहीं मिलती. परिश्रम का ये मतलब नहीं कि आप ज़िन्दगी जीना छोड़ दें, और पैसे कमाने में लग जाएँ. परिश्रम करते हुए, अपने लोगों को साथ लेकर जीवन में आगे बढ़े. ज़िन्दगी जीने का नाम है, यहाँ हर वक्त खुश, मौज मस्ती करते रहें|
    इच्छा अनुसार ही काम चुने – कुछ लोग बेमन से काम करते है, जिससे वे अपना 100% उस काम में नहीं देते है. ऐसे लोग किसी और की इच्छा के अनुसार ये काम चुन लेते है, जिससे उन्हें एक दबाब महसूस होता है, और वे लोग काम में परिश्रम करने की जगह बस नाम के लिए ऐसे ही काम करते है. हमें अपनी इच्छा के अनुसार ही काम करना चाहिए, तभी उसे पुरे मन व लगन से कर पायेंगें. काम में मन लगेगा तभी हम खुद से परिश्रम करने की भी इच्छा रखेंगें.
    असफलता से हार न माने – सफल व्यक्तियों के जीवन को देखें तो जानेगें, उन्हें पहली बार में ही सफलता नहीं मिली थी. निरंतर प्रयास से वे अपने मुकाम तक पहुंचे थे. उदाहरण के तौर पर अगर शाहरुख़ खान फिल्मों में आने से पहले ही ये सोच लेता कि उसे यहाँ काम मिलेगा ही नहीं तो वह आज इतना बड़ा स्टार न बनता. अगर धीरुभाई अम्बानी उस छोटी सी कुटिया में बस बैठे रहते, मेहनत न करते तो आज इतना बड़ा अम्बानी का कारोबार न होता. अगर अब्राहम लिंकन परिश्रम न करता, स्ट्रीट लाइट में बैठकर पढाई न करते तो वे अमेरिका के राष्ट्रपति कभी न बन पाते. नरेंद्र मोदी जी परिश्रम न करते तो आज चाय की ही दुकान में बैठे होते.
    ये महान हस्तियाँ हमें यही सिखाती है कि हार कर घर नहीं बैठो, बल्कि उठो आगे बढ़ो, क्यूंकि हर सुबह उम्मीद की एक नयी किरण लाती है. हमें नया दिन मिला है, मतलब परमेश्वर के पास अभी भी हमारे लिए एक अच्छी योजना है, जो हमारे भलाई के लिए है, न कि हमें नष्ट करने के लिए. परिश्रम के बल पर दुनिया में हर चीज संभव है.


    परिश्रम से एक न एक दिन सफलता जरुर मिलती है – आज हम अगर विज्ञान के इतने चमत्कार देख पा रहे है, तो ये मानव जाति के परिश्रम का ही फल है. विज्ञान की तरक्की की वजह से आज हम चाँद में अपना कदम रख चुके है, व मंगल गृह पर अपना घर बसाने वाले है. देश विदेश में तरक्की भी वहां रहने वाले नागरिकों की वजह से होती है. पूरी दुनिया में विकसित व विकासशील देश है. ये सब परिश्रमी व्यक्तियों की वजह से ही यहाँ तक पहुँच पायें है. अमेरिका, चीन, जापान जैसे देशों के साथ आज हमारे भारत का नाम भी लिया जाता है, जो जल्द ही विकसित देशों की लिस्ट में आने लगेगा. जापान में हुए परमाणु बम विस्फोट के बाद, कुछ साल पहले आये विशाल भूकंप के बाद उसके अपने आप को फिर खड़ा किया, ये सब परिश्रम की वजह से संभव हो सका है.
    परिश्रम के फायदे/लाभ (Parishram benefits)–
    आपको जीवन की सारी सुख सुविधा मिलेंगी, लक्ष्मी की प्राप्ति होगी. आज के समय में धन जिसके पास है, वो दुनिया की हर सुख सुविधा खरीद सकता है.
    परिश्रम से मानसिक व शारीरिक चुस्ती मिलती है. आज के समय में परिश्रम नहीं करने पर बहुत सी बीमारियाँ शरीर में घर कर लेती है. इसलिए फिर तंदरुस्ती, स्फूर्ति के लिए शारीरिक श्रम करने को बोला जाता है, जिस वजह से लोग फिर जिम में भी समय बिताने लगते है. मानसिक विकास के लिए उसका परिश्रम करते रहना बहुत जरुरी है, इसी के द्वारा लोगों ने नए नए अनुसन्धान दुनिया में किये है.
    परिश्रम से हमारे जीवन में व्यस्ता रहती है, जिससे किसी भी तरह की नकारात्मक बातें हमारे जीवन में नहीं आ पाती, व इससे मन अंदर से शांति महसूस करता है.
    परिश्रमी व्यक्ति हमेंशा सफलता की ओर अग्रसर रहता है, और समय समय पर उसे सफलता का स्वाद भी चखने को मिलता है.
    परिश्रम नहीं करने से क्या होगा
    जीवन में परिश्रम करना बहुत जरूरी है अगर हम आलस करते है और परिश्रम से दूर भागते है तो अपने जीवन में कभी हम सफल नही हो पायेंगे. हमें हमेशा गरीबी में ही अपना जीवनयापन करना पड़ेगा और हो सकता है एक दिन हम भूख से मर जाएँ. हमें अनेक ग्रन्थों में लिखा हुआ मिलता है की परिश्रम ही सफलता की कुंजी है, अगर हम परिश्रम नहीं करेंगे तो एक दिन हमारा आस्तित्व खत्म हो जाएगा. लोग हमसे बात करना नहीं चाहेंगे और हो सकता है आपको दुनिया के तानो से तंग आकर अपने आप को मिटाना पड़ें, यानि ख़ुदकुशी करनी पड़े. इसलिए अपने जीवन में सफलता पाने के लिए परिश्रम बहुत जरूरी है.

    आलसी व्यक्ति हमेंशा दुखी, परेशान होता है, वह अपने जीवन को कोसता ही रहता है. वह यहाँ वहां की शैतानी बातें सोचकर दुखी रहता है. वह अपने हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पसंद करता है, उसे लगता है, कोई और उसकी जगह मेहनत कर दे. लेकिन ये दुनिया का सबसे बढ़ा सच है कि अपना बोझ व्यक्ति को स्वयं उठाना पड़ता है, उसे अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए खुद ही परिश्रम करना होगा, इसमें उसकी मदद कोई भी नहीं सकता. परिश्रमी के जीवन में प्रसन्नता, शांति, सफ़लता बनी रहती है.

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  • ब्यूटी और बीस्ट की कहानी | Beauty and the Beast Kahani in hindi

    सूरत नहीं सीरत (गुणों) से होता है प्यार

    surat se nahi seerat se pyar story in hindi

    कहानी के पात्र

    • ब्यूटी
    • राक्षस(बीस्ट)
    • व्यापारी
    • ब्यूटी की दो बहनें

    ब्यूटी और बीस्ट की कहानी (Beauty and the Beast kahani)एक समय की बात है, एक व्यापारी अपनी तीन बेटियों के साथ रहता था. व्यापारी को अपनी तीनो बेटियों से प्यार था. एक दिन उसे किसी काम से दूसरे देश जाना था, जाने से पहले व्यापारी ने अपनी तीनो बेटियों को अपने पास बुलाया और पूछा, “मेरी प्यारी बच्चियों, कहो मैं परदेस से तुम तीनों के लिए क्या लाऊं?”

    पहली बेटी ने सुन्दर कपडे और दूसरी बेटी ने गहने मंगवाए. तीसरी बेटी जिसका नाम ब्यूटी था, उसने अपने पिता से कहा कि वह उसके लिए एक गुलाब का फूल ले आये. व्यापारी ने अपनी तीनो बेटियों से उनके उपहार लाने का वादा किया और अपने सफर पर निकल पड़ा.


    अपना काम खत्म कर के व्यापारी जब अपने घर की ओर चला, तो वह तूफ़ान में फंस गया और रास्ते से भटक गया. बहुत कोशिशों के बाद भी वह अपने घर का रास्ता ना ढूंढ सका, तब तक तो अँधेरा भी हो चुका था. तभी अचानक उसकी नज़र एक रौशनी पर पड़ी जो दूर एक महल से आ रही थी. व्यापारी ने सोचा शायद महल में उसे रात बिताने की जगह मिल जाये, इसलिए वह उस तरफ चल पड़ा.

    surat se nahi seerat se pyar
    जब व्यापारी महल में पंहुचा तो, महल में कोई भी नहीं था. उसने हर तरफ देखा लेकिन उसे महल में कोई नहीं मिला. आश्चर्य की बात थी कि खाने की मेज़ पर कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन रखे हुए थे, परन्तु उन्हें खाने वाला कोई नहीं दिख रहा था. भोजन को देख व्यापारी की भूख और बढ़ गयी थी, इसलिए उसने भर पेट खाना खाया और एक कमरे में मुलायम गद्दों पे सो गया. सुबह व्यापारी ने जब महल के बागीचे में सुन्दर गुलाब खिले देखे, तो उसे ब्यूटी से किया हुआ वादा याद आ गया. उसने एक फूल तोडा और घर की ओर जाने लगा तभी वहाँ एक भयानक जीव प्रकट हुआ और बोला, “मैंने तुम्हे अपना भोजन खाने दिया, अपने मुलायम गद्दों पर सोने दिया और तुम मेरे ही बागीचे से गुलाब तोड़ रहे हो. तुम्हे इसकी सज़ा भुगतनी होगी.“ व्यापारी बहुत डर गया था, कांपते हुए बोला “मुझे माफ़ कर दो! माफ़ कर दो मुझे!! मुझे मत मारो. यह गुलाब मैंने अपने लिए नहीं तोड़ा, अपनी बेटी के लिए तोड़ा था. मैंने अपनी बेटी से वादा किया था कि मैं उसके लिए गुलाब का फूल लाऊंगा.” यह सुनते ही राक्षस ने व्यापारी से कहा कि वह एक शर्त पर उसे छोड़ेगा, उसे अपनी बेटी को महल में भेजना होगा. डरा और घबराया हुआ व्यापारी अपनी बेटी को भेजने का वादा कर वहां से चला गया.


    घर पहुँच कर व्यापारी ने अपनी बेटियों को सारी बात बताई और ब्यूटी से माफ़ी मांगते हुए कहा, “अपनी जान बचाने के लिए मुझे उस समय कुछ समझ नहीं आया और मैं राक्षस से यह वादा कर आया. मुझे माफ़ कर दो ब्यूटी! अपने स्वार्थी पिता को माफ़ कर दो!!” ब्यूटी ने अपने पिता के गले लगते हुए तसल्ली दी, ” आप बिलकुल परेशान ना हों पिताजी, मैं आपका किया हुआ वादा ज़रूर निभाऊंगी.”


    ब्यूटी जब महल पहुंची तो बहुत घबराई हुई थी, राक्षस का भयानक चेहरा देख कर वह बहुत डर गयी. लेकिन राक्षस ने उसका खुले दिल से स्वागत किया. राक्षस ने उसे रहने के लिए अपने महल का सबसे अच्छा कमरा दिया और जब ब्यूटी आग के सामने बैठ कर कढ़ाई करती तब राक्षस उसके पास घंटों तक बैठा रहता और उसे निहारता रहता. धीरे-धीरे दोनों को एक दुसरे का साथ अच्छा लगने लगा और वे अच्छे दोस्त बन गए. अब वह दोनों सारा सारा दिन एक दूसरे से बातें करते और खुश रहते. राक्षस को ब्यूटी बहुत अच्छी लगती थी और वह उससे शादी करना चाहता था, लेकिन डरता था कि ब्यूटी एक राक्षस से कभी शादी नहीं करना चाहेगी. बड़ी हिम्मत जुटा कर एक दिन उसने ब्यूटी से अपने दिल की बात कहने का फैसला किया. जब वह ब्यूटी के पास पहुंचा तो देखा कि ब्यूटी अपने पिता को याद करके बहुत उदास है. उससे ब्यूटी की उदासी देखी नहीं गयी और उसने ब्यूटी को एक जादुई शीशा दिया जिससे वह अपने पिता को देख सके. ब्यूटी बहुत खुश हुई, लेकिन जब उसने अपने पिता को देखा तो वह बहुत बीमार थे. यह देख ब्यूटी ने राक्षस से अपने पिता से मिलने की इच्छा जताई. राक्षस ने उसे पिता से मिलने की इजाज़त दे दी और सात दिन में वापिस आने को कहा . ब्यूटी ने तय समय में आने का वादा किया और अपने घर चली गयी. ब्यूटी को सामने देख व्यापारी खुश हो गया और जैसे जैसे उसे पता चला कि राक्षस देखने में भले ही क्रूर हो लेकिन वह दिल का बहुत ही नेक और दयालु है, व्यापारी की सेहत और सुधरती गयी. परिवार से मिलने की खुशी में सात दिन कब निकल गए, ब्यूटी को पता ही नहीं चला.

    एक दिन ब्यूटी ने सपना देखा कि राक्षस की हालत बहुत खराब है और जल्दी ही मरने वाला है. अगले ही दिन वह महल वापस आ गयी और उसने पाया कि राक्षस बगीचे में बेसुध पड़ा हुआ था जैसे वह मर चुका हो. ब्यूटी उसे देखते ही रो पड़ी, “तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ और तुमसे शादी करना चाहती हूँ. मैं अपनी सारी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिताना चाहती हुँ.” जैसे ही ब्यूटी ने यह शब्द कहे, एक रौशनी ने राक्षस को ढक लिया, और जब रौशनी गायब हुई तो भयानक और क्रूर दिखने वाला राक्षस एक खूबसूरत राजकुमार में बदल चुका था. राजकुमार ने बताया कि एक दुष्ट जादूगरनी ने उसे एक राक्षस बना दिया था और सच्चे प्यार से ही उस जादू को तोडा जा सकता था. बहुत समय से राजकुमार उस लड़की को ढूंढ रहा था, जो उससे उस रूप में प्यार करे जिससे सब डरते थे, जो उसकी सूरत से नहीं बल्कि उसके गुणों को चाहे. आखिरकार राजकुमार को उसका सच्चा प्यार मिल गया और वह बहुत खुश था. जल्द ही ब्यूटी और राजकुमार की शादी हो गयी और वह अपनी गुलाबों सी खूबसूरत दुनिया में हसी खुशी रहने लगे.

    शिक्षा – इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी की सूरत को देखकर उसकी सीरत का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए. इन्सान का बाहरी रूप सिर्फ दिखावा है, उसका साफ दिल, उसके गुण देखकर इन्सान से प्यार किया जाता है !ऐसी ही अन्य प्रेरणादायक हिंदी कहानी के लिए क्लिक करें .साथ!

  • डिस्नी सिंड्रेला की कहानी | Disney cinderella story in hindi

    Disney cinderella story in hindi बचपन में हमने दादी, नानी से बहुत सी परियों (fairy tale) की कहानियां सुनी है. जिसमें से सिंड्रेला की कहानी तो हमारी फेवरेट हुआ करती है. हर लड़की को अपने राजकुमार (prince charm) का इंतजार होता है, जो सफ़ेद घोड़ी में आकर उसे ले जाये.  बचपन से हम लड़कियां यही सपने देखकर बड़े होते है. सिंड्रेला भी ऐसी ही लड़की थी, जो बचपन से अपने राजकुमार का इंतजार करती आ रही थी. ख़राब हालात, मजबूरी में रहते हुए भी उसने यह सपना देखना नहीं छोड़ा था. सिंड्रेला की लाइफ में एक पारी आती है, जो उसके जीवन को बदल देती है, उसे उसके राजकुमार से मिलाती है. चलिए आज आपको परियों की दुनिया में ले चलते है, आपको सिंड्रेला और उसके राजकुमार से मिलाते है.

    डिस्नी राजकुमारी सिंड्रेला की कहानी
    Disney cinderella story in hindi

    कहानी के मुख्य पात्र

    सिंड्रेला
    राजकुमार
    व्यापारी (सिंड्रेला का पिता)
    सिंड्रेला की सौतेली माँ
    सिंड्रेला की सौतेली बहने
    जादूगरनी

    डिस्नी सिंड्रेला की कहानी (Disney cinderella kahani)-

    एक समय की बात है। किसी राज्य में एक व्यापारी रहा करता था। उस व्यापारी की एक छोटी सी बेटी थी, जिसका नाम था एला। एला बहुत ही प्यारी और नेक बच्ची थी। उसके पिता उससे बहुत प्यार करते थे और उसकी सारी ज़रूरतें पूरी करते थे। लेकिन एला की ज़िन्दगी में एक चीज़ की कमी थी वह थी, उसकी माँ जो उसे छोड़ कर भगवान् के घर चली गयी थी। एला की इस कमी को पूरा करने के लिए उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली। एला की नयी माँ की दो बेटियाँ थीं। वह बहुत खुश थी कि माँ के साथ साथ उसे बहने भी मिल गयी थी। दोनों बहने बहुत घमंडी थी, लेकिन एला उनसे प्यार करती थी और अपनी नयी माँ को भी बहुत चाहती थी।एला की खुशियाँ ज़्यादा दिन टिक नहीं पायीं। एक दिन जब उसके पिता अपने काम से किसी दूसरे शहर गए, तो फिर कभी वापस नहीं आये। एला पर तो मानो मुश्किलों का पहाड़ टूट गया हो। पिता का साया सर से उठते ही उसकी माँ और बहने उसके घर की मालकिन हो गई और एला के साथ नौकरों जैसा बर्ताव करने लगीं। उन्होंने घर के सारे नौकरों को निकाल दिया और अब एला ही घर का सारा काम करती। उसकी बहनो ने तो उसका कमरा भी उससे छीन लिया और उसे एक कोठरी में रहने के लिए छोड़ दिया। एला अपनी बहनों के पुराने कपड़े और जूते पहनती। सारा दिन उनके काम करती। कभी कभी तो एला इतनी थक जाती कि अंगीठी के पास ही सो जाती। अकसर एला जब सुबह उठती तो अंगीठी की राख (सिंडर) उस पर पड़ी होती। उसकी बहने उसे सिंडर-एला कह के चिढ़ाती और इस तरह उसका नाम एला से सिंडरेला हो गया।

    एक दिन राज्य में ऐलान हुआ कि महल में एक बहुत बड़ा आयोजन है और राज्य की सभी लड़कियों की बुलाया गया है ताकि राजकुमार अपनी पसंद की लड़की से शादी कर सके। राज्य की सारी लड़कियां बहुत खुश और उत्साहित थीं। सिंड्रेला और उसकी बहने भी अपनी किस्मत आज़माने को बेचैन थी। लेकिन फिर सिंड्रेला की ये खुशी उसकी सौतेली माँ को रास नहीं आई और उसने सिंड्रेला को महल में जाने से मना कर दिया। बेचारी सिंड्रेला दुखी मन से फिर अपने काम में लग गयी और सोचती रही, कि इस वक़्त उसकी बहने क्या कर रही होंगी और राजकुमार देखने में कैसा होगा।

    Cinderella and Angle ( सिंडरेला और जादूगरनी)

    सिंड्रेला जब इन खयालो में खोई हुई थी, तभी वहां एक जादूगरनी आई। उसने सिंड्रेला को दुखी देखा तो उसकी मदद करनी चाही। सिंड्रेला ने सारी बात जादूगरनी को बताई। जादूगरनी ने सिंड्रेला से कहा, “ओह! प्यारी सिंड्रेला, मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। ” यह कह कर जादूगरनी ने अपनी छड़ी घुमाई और वहाँ पड़े एक बड़े से कद्दू को एक बग्घी मे बदल दिया। वहीं चार चूहे उछल कूद मचा रहे थे, जादूगरनी की नज़र उनपर पड़ी तो उसने चूहों को घोड़ा बना दिया। अब जरूरत थी एक कोचवान की। जादूगरनी ने चारों तरफ नज़र घुमाई तो उसे एक मेंढक दिखा और उसे कोचवान में बदल दिया। सिंड्रेला यह सब देख हैरान हो रही थी कि तभी जादूगरनी उसकी तरफ मुड़ी और अपनी जादू की छड़ी घुमा दी, और पलक झपकते ही सिंड्रेला के मटमैले और फ़टे हुए कपड़े साफ और सुंदर हो गए। उसके पैरों में टूटी हुई चप्पल की जगह सुंदर कांच की जूती आ गई। अब सिंड्रेला महल मे जाने के लिए तैयार थी। जादूगरनी ने सिंड्रेला को विदा करते हुए कहा, “बेटी, तू अपनी इच्छा पूरी कर ले, लेकिन याद रखना रात १२ बजते ही यह सारा जादू खत्म हो जाएगा।

    सिंड्रेला जब महल पहुंची तो सबकी नज़रे उसी को देखने लगी। वह बहुत ही सुंदर लग रही थी। राजकुमार ने जब उसके साथ डांस करना चाहा तो सिंड्रेला की सौतेली बहनों के साथ साथ वहां मौजूद सभी लड़कियाँ सिंड्रेला से जलने लगीं। लेकिन कोई सिंड्रेला को पहचान नही पाया। राजकुमार ने उसे देखते ही फैसला कर लिया था कि वह इसी लड़की से शादी करेगा। सिंड्रेला भी राजकुमार की आखों में ऐसी डूबी कि उसे जादूगरनी की बात याद ही नही रही। देखते ही देखते १२ बज गए। घंटी बजते ही सिंड्रेला को याद अया कि १२ बजे जादू खत्म हो जाना था। सिंड्रेला बिना राजकुमार से कुछ कहे वहाँ से भाग निकली। वह नही चाहती थी कि राजकुमार उसे उसके पुराने, गंदे कपड़ो मे देखे और उससे नफरत करे। भागते वक्त सिंड्रेला की कांच की एक जूती महल में ही छूट गयी जो राजकुमार ने उठा ली। राजकुमार ने बहुत कोशिश की सिंड्रेला को ढूँढने की लेकिन वह उसे कहीं नही मिली। सबने राजकुमार से उसे भूल जाने को कहा लेकिन राजकुमार सिंड्रेला को भूल नही पा रहा था।

    आखिरकार सारे राज्य मे ऐलान हुआ कि जिस लड़की के पैरों मे वह जूती आएगी राजकुमार उसी से शादी करेंगे। राज्य मे तो जैसे तूफान आ गया था। हर लड़की राजकुमार से शादी करना चाहती थी। सभी लड़किया अपने आप को उस कांच की जूती की मालकिन बताने लगी। लड़कियों के घर जा जा कर उन्हें जूती पहनाई गयी लेकिन उनमें से किसी को भी वह पूरी नही आई। आखिर में सिंड्रेला की बहनों की बारी आई। दोनो ने हर कोशिश की जूती पहनने की लेकिन कोई फायदा नही हुआ। अब सबकी नज़रे सिंड्रेला पर रुक गयीं। सिंड्रेला ने जब उसे पहना तो वह जूती उसके पैर मे आ गयी जैसे उसी के लिए बनी हो। सिंड्रेला की सौतेली माँ और बहने हैरान और परेशान हो गयीं। किसी को भी उम्मीद नही थी कि वह सुंदर लड़की सिंड्रेला हो सकती है।

    राजकुमार ने जब सिंड्रेला से शादी के लिए पूछा तो सिंड्रेला ने खुशी खुशी हाँ कर दी। अगले ही दिन बड़ी धूम धाम के साथ सिंड्रेला की शादी राजकुमार से हो गयी। राजकुमार और सिंड्रेला एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे और एक दूसरे को बहुत चाहते थे। दूसरी तरफ सिंड्रेला की सौतेली माँ और बहनों को सिंड्रेला के साथ बुरा व्यवहार करने की सज़ा के रूप मे राज्य छोड़ कर जाना पड़ा।

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